"मारो क्या सोच
सरला के आदेश पर रमन ने गोली चलायी लेकिन भागते हुए आतंकी पर नही लगी।तब वह गुस्से में बोली,"ऐसे निshana लगाओगे।अगर तुम्हारा निसाना चूक गया तो आतंकी तुम्हे गोली मार देगा।गोली चलाते समय अर्जुन की तरह नज़र रखो
सरला ने इतना कहकर गोली चलायी और आतंकी ढेर हो गया।
रमन दिल्ली का रहने वाला था।औऱ कुछ समय पहले ही उसे कश्मीर भेजा गया था।युवा सब इंस्पेक्टर रमन को कश्मीर पुलिस की एन्टी टेररिस्ट टास्क फोर्स की इंचार्ज सरला के साथ अटेच कर दिया गया था।
सरला ,रमन की हमउम्र कश्मीरी युवती थी।लम्बे छरहरे बदन की गोरी चिट्टी सुंदर युवती जो देखने मे बेहद सीधी शर्मीली सी लगती थी।आतंकवादियों का पीछा करते समय आग उगलती सी नज़र आने लगती थी।आतंकवादियों को देखकर न जाने कहां से उसमे जोश आ जाता था।कोई भी आतंकवादी उससे जिंदा बचकर नही जा सकता था।
सरला के साथ रहते रहते धीरे धीरे रमन उसके करीब आने लगा।समय मिलने पर सरला,रमन के आग्रह पर उसे कश्मीर के प्राकृतिक और दर्शनीय स्थल भी दिखाने के लिए ले जाने लगी।समय गुज़फने के साथ रमन सरला को चाहने लगा।प्यार करने लगा।उसे लेकर भविष्य के सपने बुनने लगा।लेकिन सरला भी उसे चाहती है/प्यार करती है?वह सरला को अपनी बनाना चाहता था।लेकिन यह तभी सम्भव था जब सरला भी ऐसा चाहती हो।वह भी ऐसा सोचती हो।रमन सोचने लगा,सरला के दिल की बात कैसे पता करे?
एक दिन वे दोनों बाग़ में बैठे थे।उस दिन सरला काफी खुश और मज़ाक के मूड में नज़र आ रही थी।उसको हंसते मुस्कराते देखकर रमन बोला,"बुरा न मानो तो एक बात कहूं?"
"कहो।क्या कहना चाहते हो?'सरला उसकी बात सुनकर बोली थी।
"सरला।आई लव यू।"
"इसमें बुरा मानने जैसा कुछ नही है।प्यार करना बुरा नही है"
"तो क्या तुम भी मुझसे प्यार करती हो?"
"तुम मुझसे प्यार करते हो तो मैं तुमसे प्यार क्यों नही कर सकती?"सरला ने रमन के प्रश्न का उत्तर प्रश्न में ही दिया था।
सरला की बात सुनकर रमन खुश होते हुए बोला" मैं तुम्हे अपनी बनाना चाहता हूं"।
"कैसे?"
"मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं,"।
"यह मुमकिन नहीं है।मेरी तुमसे शादी नहीं हो सकती"
"क्यो?"रमन ने प्रश्नसूचक नज़रो से अपने सामने बैठी सरला को देखा था।
"क्योंकि मेरी शादी हो चुकी है"।
"शादी हो चुकी है?"रमन ने आश्चर्य से सरला को देखा था।सुनी मांग,सुना सपाट चेहरा, और सूनी कलाइयां।उसे सरला की बात पर विश्वास नहीं हुआ।
"इस तरह मुझे क्या देख रहे हो?सच यही है।"रमन को अविश्वास भरी नज़रो से अपनी तरफ देखते देखकर सरला बोली थी।
"लेकिन लगती नही विवाहित हो,"रमन बोला,"पुलिस की नौकरी में भी इतनी बंदिश तो नही कि कोई भी सुहागचिन्ह न लगा सको।"
"न मैं इतनी मॉर्डन हूँ,न ही नौकरी में इतनी बंदिश है कि कोई चिन्ह न धारण कर सकूं"।
"तो फिर क्या बात है?'
"हमारे धर्म मे विधवा औरत सुहागचिन्ह धारण नहीं कर सकती"।
"तुम विधवा हो।कब हुई विधवा?क्या हुआ तुम्हारे पति को,?"रमन ने एक साथ कई प्रश्न कर डाले थे।
"मेरी शादी हुई थी लेकिन सुहागरात मनाने से पहले ही मेरी मांग का सिंदूर उजड गया।दुल्हन तो बनी लेकिन पत्नी बनने से पहले मेरी मांग सुनी हो गयी"।और सरला का गला भर्रा गया।
"ओ हो", रमन अफसोस प्रकट करते हुए बोला,"कैसे?"
रमन मैं अपने अतीत को नही भूली हूँ।